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क्या कसूर था आखिर मेरा ? भाग 30



स्पेक्टर सतवीर  ने अर्जुन को लाकर जैल में बंद  कर  दिया।

ये तूने  अच्छा नही किया दरोगा , तुझे  इसकी बहुत  बड़ी भरपाई करना  पड़ेगी  तेरी सात पुश्ते याद रखेंगी, तू चाह  कर  भी कभी इस दिन को नही भूल पायेगा जब  तूने  मेरे हाथ में हथ कड़ी डाली थी और मुझे  जैल  में बंद  किया था । अर्जुन ने चीख  कर  कहा


सतवीर  ने पास खड़े दरोगा  से कहा " कोई इसको समझाये  की मैं किसी से डरने वाला नही हूँ, मैं वो नही जो किसी से डर कर  अपने फर्ज़ से गद्दारी कर  बैठे  कल  को सब  को पता  चल  जाएगा असली गुनेहगार कौन था , कल  को सब  को पता  चल जाएगा कि मुजरिम कितना ही खुद  को छिपा  ले दुनिया से लेकिन कानून उसे ढूंढ  ही लेगा कानून  अंधा  जरूर है  लेकिन उसके हाथ बहुत  लम्बे है  जो पाताल में से भी  मुजरिम को पकड़  लेता है  "


सतवीर  ने कहा और अपने काम में लग  गया । अर्जुन अंदर  ही अंदर  डर रहा  था  कि अब उसके साथ  क्या होगा।


अंजली  और दुर्जन थोड़ा खुश  थे  की अर्जुन पकड़ा  गया  और ईश्वर  ने चाहा तो कल  को सबके  सामने उसकी बेटी बेगुनाह साबित हो जाएगी और असली गुनेहगार पकड़ा  जाएगा।


वही दूसरी तरफ  अमित अब थोड़ा  बहुत  सही हो रहा  था लेकिन उसके चेहरे  से हसीं तो कही गायब  हो गयी थी । वो अब पहले  वाला अमित नही रहा  था  वो स्कूल  पढ़ाने जाता और उसके बाद घर आकर कमरे में चला  जाता, ना किसी से मिलता और ना ही बात करता ।


अब वो अपने दर्द को भुलाने  के लिए  सीगरेट का सहारा  लेने लगा  था । वो अपने दिल से अंजली की हर एक याद को मिटा देना चाहता  था  लेकिन ना जाने क्यू ऐसा करने में वो सक्षम नही हो पाता कही  ना कही सोते, जागते उठते बैठते  उसके ज़हन  में अंजली का ख्याल  आ  ही जाता और वो फिर  पुरानी यादों में चला  जाता जो उसे बेहद तकलीफ  देती।


"अमित बेटा बाहर  आओ  देखो तुमसे कौन मिलने आया  है  " अमित की माँ ने कहा और उसका हाथ  पकड़  कर  अमित के कमरे  में आ  पहुंची 


अमित जो की बैठा  हुआ था  और गहरी  सोच  में था  अपनी माँ को देख  उठ खड़ा  हुआ और बोला " जी माँ कैसे आना  हुआ, "

"बेटा देखो आज  तुमसे मिलने कौन आया  है  तुम्हारी दोस्त सोनाली " अमित की माँ ने कहा

"हाय, अमित कैसे हो " सोनाली ने पूछा 

अमित ने उसका जवाब  देते हुए  पूछा  " तुम केसी हो और आज  कल  क्या कर रही हो "

"कुछ  नही बस  पढ़ाई मुकम्मल  हो चुकी है  माँ का हाथ  बटा रही हूँ घर के काम में, और एक आद  जगह  साक्षात्कार दे चुकी हूँ जॉब के लिए  " सोनाली ने कहा

"अच्छा तुम दोनों बाते करो मैं चाय  बना  कर  लाती हूँ" अमित की माँ ने कहा

"अरे आंटी  मेरे होते हुए आप  चाय  क्यू बनाएंगी, आप  बैठिये मैं बना कर  लाती हूँ " सोनाली ने कहा


"अरे नही बेटा, माना ये घर तुम्हारा भी है  लेकिन इसका मतलब  ये तो नही कि मैं तुमसे चाय बनवा  कर  पी लू  तुम दोनों बाते करो मैं अभी चाय  बना  कर  लाती हूँ और तुम्हारी पसंदीदा  मटरी " अमित की माँ ने कहा

सोनाली और अमित उस समय  अकेले थे  कमरे  में, अमित की माँ जा चुकी थी ।

अमित अभी भी खामोश  ही था । सोनाली उसे देख  रही  थी  वो उससे बाते करना  चाहती  थी  तब  ही उसने पूछा  " अमित आज  कल  कौन सी किताब पढ़  रहे  हो मुझे  भी  बता  दो दिन भर  बोर हो जाती हूँ "


"अब किताबें पढ़ना  छोड़  दी मेने, क्यूंकि जिंदगी और फालसफो में बहुत  बड़ा  अंतर  है  क्यूंकि फालसफे  और कहानियों की बाग डोर लेखक  के हाथ  में होती है  वो जैसा चाहता  है  उसे मोड़ देता है  लेकिन ज़िन्दगी की बाग डोर ईश्वर  के हाथ में होती है  और ज़िन्दगी की कहानी किस मोड़ पर  क्या रूप लेगी इस बात का पता सिर्फ ईश्वर  को होता है 


अब मैं कहानियों पर  यकीन  नही रखता  क्यूंकि ज़िन्दगी उनसे कही ज्यादा मुख्तलिफ है  यहाँ हम  जो चाहते है वो हमें मिले जरूरी नही और जिसे अपना समझें  वो कब किसी और का हो जाए ये भी नही मालूम  " अमित ने कहा


"चलो अच्छा ये सब  छोड़ो  ये बताओ इस रविवार  का क्या प्लान है , कही बाहर  चले दोस्तों के साथ  मैं भी घर में बोर हो गयी हूँ जब  से पढ़ाई मुकम्मल  हुयी है  " सोनाली ने पूछा 


"नही सोनाली मैं नही चल  सकता  ना इस रविवार  और ना आने  वाले रविवार  को, मुझे अब किसी से मिलना झूलना  अच्छा नही लगता  " अमित और कुछ  कहता  तब ही सोनाली उससे कहती है 

"ठीक  है  अमित मत  चलना , लेकिन अमित इस तरह  तुम खुद  को अपने आप को कमरे में बंद  करके  दुनिया से बच  नही सकते  तुम्हे दुनिया का सामना करना होगा। मैं जानती हूँ तुम्हारे साथ जो कुछ  भी  हुआ लेकिन इन सब मैं तुम्हारी क्या गलती ।


तुमने तो उसे सच्चा  प्यार किया था  अब वो ही बेवफा  निकली तो तुम्हारा क्या कसूर, तुम क्यू दुनिया से छिप रहे  हो, क्यू अपने आप  को अँधेरे  का गुलाम बना  कर  नशे से दोस्ती कर  रहे हो, दुनिया बहुत  बड़ी है  यूं इस तरह खुद  को कमरे में कैद करके  अपनी ज़िन्दगी और अपने आप को अज़ीयत मत  दो। ज़रूरी तो नही इंसान जिस चीज  की ख्वाहिश रखे वो उसे मिल जाए।" सोनाली ने कहा


अमित उसकी बाते सुन रहा  था  इससे पहले  वो कुछ  कहता  तब  ही अमित की माँ वहा  चाय  लेकर आ  गयी 

तीनो ने चाय  पी , सोनाली अमित को प्यार भरी नज़रो से देख  रही  थी  और अमित अपने ही आप  में कही गुम सा था  मानो उसके अंदर   सवालों की एक जंग  चल  रही हो और वो उनके जवाब  जानना चाहता  हो।


"अच्छा आंटी  अब मैं चलती  हूँ " सोनाली ने कहा अमित की माँ से

"अरे बेटा इतने दिनों बाद आयी थी थोड़ी देर और रुको, अपने दोस्त से बाते करो " अमित की माँ ने कहा


"नही आंटी फिर कभी  आउंगी , अभी देर हो रही है  और अमित तुम आओगे  ना रविवार को हम  सब  दोस्त मौज मस्ती करेंगे  " सोनाली ने कहा


अमित ये सुन अपनी नज़रे  उठाता  है  वो मना करना  चाहता  है  तभी उसकी माँ बोल उठी " हाँ, हाँ क्यू नही आएगा  दोस्तों की पार्टी में ये नही आएगा  तो फिर  रंग  कौन जामयेगा तुम फ़िक्र मत करो इसे मैं भेज दूँगी  इसका भी मूड  अच्छा हो जाएगा दोस्तों के साथ  घूमने फिरने के बाद "


"पर माँ, मेरा मन नही कर  रहा ' अमित बात को टालने के लिए  कहता 

"पर  वर कुछ  नही यू इस तरह उदास रहने  से कुछ  हासिल नही होने वाला, अपनी ज़िन्दगी में आगे  बढ़ो मरने वालो के साथ मरा नही जाता बल्कि उनके जाने के बाद ज़िन्दगी को दोबारा जीने  की कोशिश करना  चाहिए  बेटा तुम चिंता  मत  करो  ये आएगा  और मैं इसे भेज  दूँगी  " अमित की माँ ने कहा


"शुक्रिया आंटी , मैं इंतज़ार करूंगी अमित तुम्हारा भूलना  मत " सोनाली ने कहा और चली गयी


"क्या माँ आपने  क्यू कहा कि मैं जाऊंगा, मुझे  अब कही  नही जाना मुझे  ऐसे ही रहने  दो " अमित ने कहा


"नही बेटा ज़िन्दगी बहुत  बड़ी है  इस तरह कैसे गुज़ारोगे सब  से नाता तोड़ कर  अँधेरे बंद कमरों में, बेटा मैं मानती हूँ पिछले  दिनों जो कुछ  भी  हुआ लेकिन बेटा ज़िन्दगी में बहुत  से हादसे होते रहते है इसका मतलब  ये तो नही कि हम  अंधेरों को अपनी ज़िन्दगी बना  ले, बेटा बाहर  निकलो घूमो फिरो ज़िन्दगी को दोबारा झिलमिलाने का मौका दो, क्या पता कोई और तुमसे टकरा जाए क्या पता  ज़िन्दगी तुम्हे दोबारा मौका दे। बेटा यूं छिपकर  दुनिया का सामना नही किया जाता दुनिया का सामना करना  है  तो दुनिया वालो कि आँख में आँखे डाल कर  सामना करना  होगा नही तो सब  तुम्हे ही गलत  और कायर समझेंगे  " अमित कि माँ ने कहा


अमित और उसकी माँ के बीच  काफी वार्तालाप हुयी और अंत में उसकी माँ उसके कमरे  से चली गयी ।


शाम  हो चुकी थी , कमलेश  ना जाने कहा कहा  भटक  रहा  था  ताकि वो अपने भांजे और अपने आप  को बचा  सके  वो सतवीर  कि कोई कमज़ोरी  तलाश  कर  रहा  था ।


सतवीर  थाने में बैठा  था  तब  ही उसके मोबाइल पर  किसी का फ़ोन  आता  जिसे सुन वो घबरा  जाता और अपनी गाड़ी लेकर घबराते  हुए  गाड़ी लेकर जाता।


आखिर  ऐसा क्या हुआ जो सतवीर  इतना घबरा  गया  आखिर  किसने उसे फ़ोन  किया, जानने के लिए पढ़ते रहिये 




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9 Comments

Mithi . S

20-Aug-2022 03:12 PM

Nice 👍

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Seema Priyadarshini sahay

20-Aug-2022 03:09 PM

बहुत ही बेहतरीन भाग👌👌

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shweta soni

20-Aug-2022 11:23 AM

Bahut khub 👌

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